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हम वैश्वीकरण के समय में है। जहां एक देश की अर्थव्यवस्था, राजनीति, पर्यावरण, सामाजिक समरसता और लगभग हर पहलु उस देश से सम्बंधित दूसरे देशो या सारे विश्व पर प्रभाव डालते है।
लेकिन इसे अगर वैश्वीकरण का नाम नही दिया जाता या इसकी परिभाषा तय नही होती या लोग इससे परिचित नही होते तब भी इसका प्रभाव उतना ही होता, जितना की आज है।
किसी सिस्टम, व्यवस्था या प्रणाली के सभी पहलु एक दूसरे पर प्रभाव डालते है, इससे कोई फर्क नही पड़ता कि वह कितना छोटा या बड़ा है?
एक देश के सभी पहलु एक-दूसरे पर प्रभाव डालते है, एक राज्य के सभी पहलु एक-दूसरे पर प्रभाव डालते है, एक जिले से सभी पहलु एक-दूसरे पर प्रभाव डालते है, एक तहसील के सभी पहलु एक-दूसरे पर प्रभाव डालते है, एक ग्राम पंचायत के सभी पहलु एक-दूसरे पर प्रभाव डालते है, एक घर के सभी पहलु एक-दूसरे पर प्रभाव डालते है और एक इंसान के सभी पहलु एक-दूसरे पर प्रभाव डालते है।
उसी तरह पृथ्वी के सभी पहलु एक-दूसरे पर प्रभाव डालते है, सौरमंडल के सभी पहलु एक-दूसरे पर प्रभाव डालते है, हमारी आकाशगंगा के सभी पहलु एक-दूसरे पर प्रभाव डालते है।
यह प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनो तरह के हो सकते है।
मानव एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाता है क्योंकि वह जानता है कि इस क्षेत्र में सकारात्मक पहलु उस पर प्रभाव तो डालेंगे ही लेकिन इसके नकारात्मक पहलु भी उसे प्रभावित करेंगे।
इसलिए वह गृहयुद्ध जैसे हालातो में अपना देश छोड़ता है या पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व पर खतरा होने के कारण दूसरे ग्रहो पर जीवन को तलाश कर रहा है।
व्यापार भी एक तरह का सिस्टम ही है जिसके हर पहलु का एक-दूसरे पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनो तरह से प्रभाव होता है।
अगर किसी व्यापारी ने कोई अच्छा उत्पाद बनाया है जो की एक सकारात्मक पहलु है तो उसे उस उत्पाद की अच्छी कीमत भी मिलेगी जो की एक सकारात्मक पहलु का सकारात्मक प्रभाव है।
उसे मिलने वाली कीमत व्यापारिक प्रणाली के अन्य सकारात्मक पहलुओं के सकारात्मक प्रभावों के लिए रास्ते खोल देगी।
लेकिन अगर उसने गलत उत्पाद बनाया जो कि अपने आप में एक नकारात्मक पहलु है तो उसे मिलने वाली कीमत पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव ही होगा और इस तरह से यह प्रभाव अन्य नकारात्मक पहलुओं के नकारात्मक प्रभावों के लिए रास्ते खोल देगा।
इसलिए एक व्यापारी को सकारात्मक पहलुओं को बढ़ाने और नकारात्मक पहलुओं को कम-से-कम करने पर ध्यान देना चाहिए।
किसी कम्पनी के नकारात्मक पहलुओं की संख्या उतनी ही होती है जितनी की उस कम्पनी में सकारात्मक पहलुओं की संख्या हो सकती है।
अगर कोई व्यापार करना चाहता है तो यह व्यापार के लिए सकारात्मक पहलु है लेकिन यह भी तो हो सकता है कि वह अपने जीवन में कभी व्यापार शुरु ही ना कर पाए।
यह व्यापार के लिए सबसे पहला नकारात्मक पहलु है।
अगर किसी के पास कोई बिजनेस आइडिया है जो की सकारात्मक पहलु है, लेकिन यह भी तो हो सकता है कि किसी इंसान को कोई बिजनेस आइडिया ही नही आए।
तो स्टार्टअप शुरु करने से लेकर लाभ कमाने, कम्पनी को बड़ा और विस्तारित करने या उसकी मोनोपोली बनाने तक उससे सम्बंधित सकारात्मक पहलुओं के नकारात्मक पहलु भी अस्तित्व में हो सकते है, वह बस तब तक ही सामने नही आएंगे जब तक वह अपना प्रभाव डालना शुरु ना कर दे।
किसी भी क्षेत्र के नकारात्मक पहलु अधिकतर समय गलतियों के रुप में होते है, व्यापार में भी।
गलतियां अपने आप में नकारात्मक पहलु होती है, जिनका प्रभाव भी व्यापार से सम्बंधित अन्य पहलुओं पर नकारात्मक ही होता है।
व्यापार में गलतियां होना सामान्य और निश्चित है।
व्यापारिक गलतियों का कम, सुधारने योग्य और कम कीमत की होना उसका सकारात्मक पहलु है लेकिन गलतियों का अधिक, ना सुधारने योग्य और महंगी होना उसका नकारात्मक पहलु है। जिसके प्रभाव से कम्पनी को बंद करना पड़ सकता है, वह कभी उभर नही सकती है या वह दिवालिया हो सकती है।
व्यापार में दिवालिया होने की स्थिति बहुत ही खतरनाक होती है। इससे बचने के लिए दो बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
पहली यह कि ऐसी स्थिति को रोका जाए। दूसरी यह कि अगर ऐसी स्थिति आए तो सही तरह से उसका सामना किया जाए।
पहली स्थिति में दिवालिया होने के कारणों (bankruptcy causes) का पता हो तो उसे रोका जा सकता है, उन पर काम किया जा सकता है। ऐसी रणनीति बनाई जा सकती है कि वह स्थिति ना आए।
तो यह कारण हर तरह की कम्पनी के लिए लगभग समान ही हो सकते है, इससे कोई विशेष अंतर नही पड़ता कि तुम्हारी कम्पनी किस क्षेत्र की है, वह कहां है या वह कितनी बड़ी या छोटी है।
किसी कम्पनी के दिवालिया होने के निम्न कारण हो सकते है-
- Impractical Ideas-
बहुत सी कम्पनियों के दिवालिया होने की शुरुआत ऐसे आइडिया या कार्यों को अमल में लाने से ही हो जाती है, जिन्हें अमल में नही लाया जा सकता है या जिन्हें अमल में लाने के लिए जरुरत से बहुत अधिक समय और साधन खर्च होते है।
ऐसी स्थिति में ये कार्य अपना प्रभाव भी अधिक समय बाद और कम्पनी के सभी साधनों के खर्च होने के बाद देते है, उस स्थिति तक कम्पनी पर अधिक कर्ज हो चुका होता है और उसका लाभ कमाये जा रहे कर्ज के ब्याज से कम होता जाता है, इस तरह कोई कम्पनी अपने ऐसे कार्यो के कारण भी दिवालिया हो जाती है।
- Inefficient Ideas-
अप्रभावी आइडिया या कार्यो के कारण भी कम्पनी दिवालिया हो सकती है, इसी स्थिति में कम्पनी के संस्थापक या उच्च अधिकारियों के द्वारा अमल में लाये जा रहे आइडिया या कार्य लागू किए जा सकने वाले होते है लेकिन वह अप्रभावी सिद्ध होते है।
यह लाभ कमाने में असमर्थ होते है और अव्यवहारिक कार्यो की तरह ये भी कम्पनी का बहुत समय और साधन व्यर्थ कर देते है।
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Lack of Self Awareness in Entrepreneurship-
अगर कोई उद्यमिता के बारे सेल्फ अवेयर नही है, वह उद्यमिता में अपने-आप को, अपनी कमियों और खुबियों को नही जानता है और बिना सोचे-समझे या सीधे उद्यमिता के क्षेत्र में आ जाता है और अपनी बचत के सहारे कम्पनी शुरु कर देता है, तो वह कम्पनी अधिक दिनों तक बाजार में नही टीक सकती है, क्योकि उसे चलाने और संचालित करने वाला संस्थापक ही अपने-आप से अनजान है।
वह कम्पनी शुरु कर पाया क्योंकि उसके पास उतना निवेश या साधन थे लेकिन कम्पनी को संचालित करने के लिए वह निवेश या साधन काम नही आएंगे।
कम्पनी को संचालित करने के लिए उसकी सेल्फ अवेयरनेस, उसका ज्ञान और कौशल कार्य करते है।
- Too Much and Very Diversify Goals in Life-
जीवन में कम्पनी शुरु करने और उसे सफल बनाने के समय जीवन के सभी लक्ष्यों का पीछा करने से वही होगा जो एक ही समय में कई सारे कार्यो को पूरा करने की कोशिश से होता है।
कोई भी कार्य अपने समय पर पूरा नही हो पाएगा।
हमने दूसरो को मल्टी टास्किंग ना करने की सलाह दी है लेकिन मल्टी गोल्स सेटिंग ना करने की सलाह नही दी है।
अगर कोई कम्पनी भी संचालित कर रहा है और जीवन के दूसरे लक्ष्यों को भी उतना ही समय दे रहा है, तो अगर कम्पनी को संचालित करने के लिए दिया गया समय पर्याप्त नही है तो यह कम्पनी के दिवालिया होने का कारण हो सकता है।
3 Main Objectives of Business: Product, Customer and Profit
- Few Customers-
अपने उत्पाद को नए ग्राहक नही खरीदेंगे तो यह कुछ ही ग्राहक तक सीमित रहेगा।
इससे कुछ ही ग्राहकों पर लाभ की निर्भरता होगी।
ग्राहको की संख्या पर भी लाभ निर्भर करता है।
किसी भी क्षेत्र की कम्पनी चाहे वह कोई भी उत्पाद बना रही हो, अगर लम्बे समय से उसके उत्पाद को नए ग्राहक नही खरीद रहे है तो उसे सावधान हो जाना चाहिए।
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- Bad Product-
खराब या अयोग्य उत्पाद बनाने वाली नई कम्पनियां दिवालिया होने की स्थिति तक पहुंच तो जाएगी क्योंकि उसे लाभ ही नही होगा लेकिन खराब या अयोग्य उत्पाद बनाने वाली पुरानी कम्पनियां भी दिवालिया हो सकती है।
किसी कम्पनी ने अपना पहला उत्पाद बहुत अच्छा और योग्य बनाया हो इसका मतलब यह नही है कि उस कम्पनी के आने वाले उत्पादो पर ग्राहक आंखे बंद करके भरोसा करेंगे और उसे खरीदने के लिए हमेशा तैयार रहेंगे।
तो खराब या अयोग्य उत्पाद भी कम्पनी के दिवालिया होने का कारण हो सकता है इससे कोई विशेष अंतर नही पड़ता कि वह कम्पनी नई है या वह अनुभवी है।
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- Lack of Income-
आय अथवा लाभ की कमी के कारण भी कम्पनियां दिवालिया हो जाती है।
लाभ नही होगा तो उत्पाद का उत्पादन नही होगा, वह ग्राहको तक नही पहुंच पाऐगा, कम्पनी कर्मचारियों के वेतन का भुगतान नही कर पाएगी, अपने संसाधनो और मशीनरी को संचालित और प्रबंधित नही कर पाएगी, लेनदारों का कर्ज नही चुका पाएगी, कम्पनी विकास भी नही कर पाएगी और इस तरह से वह दिवालिया होने की स्थिति तक पहुंच जाएगी।
- Lack of Adaptation-
कई लोग अपने जीवन के किसी क्षेत्र में बहुत अच्छा प्रदर्शन करते है, वह अच्छे अंक लाते है, जल्दी नौकरी करने लग जाते है, जल्दी पैसा कमाने लग जाते है लेकिन वह अपने प्रदर्शन को निरंतर नही रख पाते है।
कोई किसी परीक्षा को पास करके नौकरी करने लग जाए इसका मतलब यह नही है कि वह जीवन की हर परीक्षा में सफल हो।
कुछ ही समय में प्रसिद्ध हुए कलाकर या उनकी रचनाओं के साथ यह होता है।
उनकी एक रचना को लोगो ने पसंद किया था इसका मतलब यह नही था कि उनकी आने वाली सभी रचनाओं को पसंद किया जाएगा।
इनका कारण अनुकूलन की कमी होता है।
बाजार में कोई एक कम्पनी का पहला उत्पाद सफल रहा है इसका मतलब यह बिल्कुल नही होता है कि उनका आने वाला हर उत्पाद सफल होगा, हर उत्पाद को ग्राहक खरीदनें के लिए तैयार रहेंगे या वह हमेशा ही लाभ कमाते रहेंगे।
किसी कम्पनी को चाहे वह नई हो या पुरानी उसे बाजार की मांगो के अनुसार हमेशा अनुकूलित रहना पड़ता है।
अगर यह नही हुआ तो वह बाजार उसके लिए प्रतिकूल व्यवहार करेगा और उसे असफलता की ओर मोड़ेगा या कम्पनी के प्रतियोगी उसे बाजार से बाहर कर देंगे।
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- Lack of Investment-
कम्पनी में नई मशीनरी लगाने के लिए, उसे विकसित और विस्तारित करने के लिए, दूसरी शाखा खोलने के लिए, जोखिम उठाने के लिए या बेहतर उत्पाद बाजार में लाने के लिए एक बड़ी मात्रा में धन की आवश्यकता होती है जो कि निवेशको से आता है।
लेकिन यह भी हो सकता है निवेशक कम्पनी में निवेश ना करे।
कम्पनी में निवेश ना होने से उसकी सफलता को पूरा करने वाले सारे कार्य रुक जाते है।
नई या छोटी कम्पनियों का वर्तमान लाभ उसके विकास के लिए पर्याप्त नही होता है और वह निरंतर भी नही रहता है, इसलिए निवेश ना होने से वह सिकुड़ती जाएगी और अंत में दिवालिया हो सकती है।
- Lack of Motivation-
किसी भी कम्पनी को सफल बनाने के लिए उसके संस्थापक और सीईओ का बहुत बड़ा योगदान होता है।
बहुत सी कम्पनियों के संस्थापक खुद ही अपनी कम्पनी के सीईओ होते है।
यह कम्पनी की सफलता के केन्द्र बिन्दु होते है। इसलिए इनका प्रेरित रहना कम्पनी के लिए जरुरी होता है और इनके प्रेरित या मोटिवेटेड ना होने से कम्पनी को हानि होती है।
व्यापारी के लिए सबसे बड़ा मोटिवेशन लाभ अर्जित करना होता है, तो अगर संस्थापक या सीईओ को अधिक लाभ ना हो तो वह प्रेरित भी नही होगा और इससे कम्पनी अधिक सफलता तक नही पहुंच पाएगी।
इसलिए संस्थापक या सीईओ की कम्पनी में एक अच्छी हिस्सेदारी होनी चाहिए और संस्थापक होने के नाते तुम्हें भी यह ध्यान रखना चाहिए कि कम्पनी की हिस्सेदारी का अधिकतर भाग निवेशकों या अन्य शेयर धारकों के पास ना जाए।
- Bad Money and Asset Management-
पैसा, लाभ या निवेश भी एक तरह से कम्पनी के एसेट ही है।
कम्पनी के कर्मचारियों के द्वारा गलत या खराब एसेट मैनेजमेंट के कारण भी कम्पनी दिवालिया हो सकती है।
कम्पनी के एसेट का गलत तरह से उपयोग किया या उन्हें व्यर्थ किया जाएगा तो वह जल्द ही समाप्त हो जाएंगे।
एसेट, लाभ या साधनों के बिना कम्पनी को अस्तित्व में नही रखा जा सकता है।
कम्पनी के एसेट प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
इसके लिए मिटिंग होनी चाहिए, इन्हें कैसे खर्च किया जाए? इस पर चर्चा होनी चाहिए, इन्हें व्यर्थ होने से बचाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए, चाहे वह बिजली बचाने के लिए, किसी तरह की सामग्री बचाने के लिए या किसी उत्पाद की लागत को कम करने के लिए ही क्यूं ना हो?
- Strong and Aggressive Competitors-
शक्तिशाली प्रतियोगी उन्हें कहा जाएगा जिनके पास अधिक और विशेष तरह के साधन हो, जिनके पास अधिक मात्रा में निवेश हो इसके कारण वह अधिक मात्रा में और विशेषतापूर्ण उत्पाद का उत्पादन कर सके।
एग्रेसिव प्रतियोगी स्वयं एग्रेसिव नही होते है बल्कि उनकी नीतियां या व्यवहार एग्रेसिव होता है।
जैसे कि वह शुरु में नुकसान उठाकर कम कीमत पर अपना उत्पाद बेचते है जिससे वह ग्राहको को अपने उत्पाद का आदि बनाते है या बाजार से बहुत अधिक मात्रा में थोक मूल्य पर उत्पादों की खरीदी के बाद उन्हें अधिक कीमत पर बेच कर अधिक लाभ कमाते है।
यह कोई साधारण और कम लाभ कमाने वाला व्यापारी या दुकानदार नही कर सकता है।
किसी भी क्षेत्र के प्रतियोगी पर किसी एक इंसान या कम्पनी का कितना नियंत्रण है? शून्य।
किसी भी क्षेत्र को चुनने पर किसी एक इंसान या कम्पनी का कितना नियंत्रण है? शत प्रतिशत।
क्षेत्र को चुनने और उसमें अपनी कम्पनी स्थापित करने के नियंत्रण के कारण ही बाजार में मोनोपोली स्थापित करने पर जोर दिया जाता है।
मोनोपोली स्थापित करने से शक्तिशाली और एग्रेसिव दोनो ही तरह के प्रतियोगी उस क्षेत्र से बाहर हो जाते है, उन्हें अपनी नीतियां लागू करने की स्वतंत्रता नही मिलती और वह हमेशा ही कम लाभ कमाते है।
फिर भी यह कहा जा सकता है कि प्रतियोगी किसी कम्पनी को दिवालिया होने की तरफ मोड़ सकते है, लोकतांत्रिक देशो और वैश्वीकरण के इस समय में अपने प्रतियोगियों पर किसी एक कम्पनी का नियंत्रण नही हो सकता है लेकिन मोनोपोली स्थापित करने के बाद बाजार पर नियंत्रण जरुर हो सकता है, जिससे प्रतियोगी अधिक शक्तिशाली या एग्रेसिव बनकर ना उभर पाए।
- Bad Deals-
किसी कम्पनी के द्वारा किए गए खराब सौदे या दूसरे कम्पनी, संस्था या व्यक्ति विशेष को दिए गए ठेके के असफल होने के कारण भी कम्पनी को बहुत अधिक मात्रा में नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
हो सकता है कि उस कम्पनी की सफलता या बाजार में बने रहने का अस्तित्व उसी एक सौदे या ठेके पर निर्भर हो।
साथ ही किसी कम्पनी के अंदर भी खराब सौदे हो सकते है जिनसे उसे नुकसान हो या संस्थापक अथवा सीईओ को नुकसान हो।
इस कारण वह प्रेरित होकर कार्य ना कर पाए जिससे सारी कम्पनी पर ही इसका प्रभाव हो और उसे अधिक मात्रा में नुकसान हो।
कम्पनी के अंदर यह सौदे उस कम्पनी की हिस्सेदारी के सम्बंध में हो सकते है या फिर किसी विशेष कार्य या योजना के सफल होने पर लाभ की हिस्सेदारी के सम्बंध में हो सकते है।
कम्पनी के अंदर किए गऐ सौदे के असफल होने का कारण सामने वाले व्यक्ति के द्वारा दिया गया धोखा हो सकता है।
Business Negotiation: Win-Win Outcomes तक पहुंचने की कला
- Lawsuit and Media Reports-
इंटरनेट और गैर सरकारी समाचार चैनलो से पहले कार्पोरेट जगत की खबरे सीमित लोगो तक ही पहुंच पाती थी।
इंटरनेट और गैर सरकारी समाचार चैनलो के आने के बाद एक सकारात्मक परिवर्तन यह हुआ है कि यह सामान्य लोगो तक भी पहुंच जाती है और नकारात्मक परिवर्तन यह हुआ है कि यह सामान्य लोगो तक भी पहुंच जाती है।
उद्यमियों के खिलाफ चल रहे मुकदमों की रिपोर्टिंग की जाती है, जिससे उस उद्यमी की कम्पनी के शेयर अचानक गिर जाते है, निवेशक उससे दूर रहते है, ग्राहक उस कम्पनी का उत्पाद खरीदना बंद कर देते है। जिससे कम्पनी का बाजार मूल्य गिर जाता है और वह दिवालिया भी हो सकती है।
इंटरनेट भी किसी उद्यमी को सकारात्मक और नकारात्मक दोनो तरह से प्रभावित कर सकता है लेकिन इसकी नकारात्मकता अधिक प्रभावी और लम्बे समय तक होती है।
वह किसी को रातो-रात वायरल कर सकता है तो किसी को बरबाद भी कर सकता है।
इंटरनेट और समाचार चैनलो की यह ताकत तब तक सकारात्मक तरह से प्रभावित करती है जब तक की कम्पनी या संस्थापक के खिलाफ किसी तरह का मुकदमा ना चले या आरोप ना लगे, इसके बाद यह अपना नकारात्मक रुप दिखाना शुरु कर देते है।
तो इनकी इस ताकत को किस रुप में देखना चाहिए? अगर कोई सामान्य रहना चाहता है या नौकरी करना चाहता है तो उसे इनकी ताकत को सकारात्मक तरह से देखना चाहिए क्योंकि इस ताकत से एक सामान्य इंसान को बहुत सहायता मिल सकती है, लेकिन अगर कोई व्यापार करना चाहता है तो उसे इनकी ताकत हो नकारात्मक तरह से देखना चाहिए क्योंकि व्यापार में इनका सकारात्मक योगदान कम होता है लेकिन यह नकारात्मक रुप में हो और कम्पनी के खिलाफ खबरे फैला रहे हो तो इनका प्रभाव बहुत अधिक होता है।
इसके अतिरिक्त भी बहुत से कारण हो सकते है जैसे-
- Lack of work ethics
- Expensive hobbies
- Poor planning
- Lack of experience
- Lack of knowledge
- Wrong database
- Weak skills
- Weak leadership
- Personal relationship problems
- Exodus of customers
- Natural disaster
- Economic crisis
- Poor business location
- Lack of micro management
- Bad decision
- Debt
- Ignoring customers complants or feedback
- High cost mistakes
- Lack of innovation
- War
- Civil war
- Ending of raw materials inventory
- Tax increasing
- Bad government policies
- Lack of assets
- Moral luck
- Mass production
- Health problems
- Importance and equality of everythink, everyone, everytime, everywere.