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आधुनिक अर्थव्यवस्था में धन (Money) केवल लेन-देन का माध्यम नहीं है, बल्कि यह व्यवसाय, निवेश और विकास का आधार भी है। आज हम अलग-अलग प्रकार के धन का उपयोग करते हैं, जैसे – नकद (Cash), बैंक धन (Bank Money), इलेक्ट्रॉनिक धन (Digital Money) आदि। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण अवधारणा है वाणिज्यिक धन (Commercial Money)। यह ऐसा धन है जो प्रत्यक्ष नकदी नहीं होता, बल्कि वाणिज्यिक बैंकों द्वारा सृजित (Created) किया जाता है और आधुनिक वित्तीय व्यवस्था में अत्यधिक प्रभावशाली भूमिका निभाता है।
वाणिज्यिक धन की परिभाषा
वाणिज्यिक धन (Commercial Money) वह धन है जो वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने, उधार देने और जमा राशि को संचालित करने की प्रक्रिया में निर्मित किया जाता है। यह धन प्रायः मुद्रा नोट के रूप में नहीं होता बल्कि क्रेडिट (Credit) अथवा जमा खातों (Deposits) के रूप में अस्तित्व में रहता है।
सरल शब्दों में, जब बैंक किसी व्यक्ति या संस्था को ऋण देता है, तो वह सीधे नकदी नहीं देता, बल्कि उधारकर्ता के खाते में राशि जमा कर देता है। यह राशि ही वाणिज्यिक धन कहलाती है क्योंकि यह व्यापारिक गतिविधियों और लेन-देन में उपयोग होती है।
वाणिज्यिक धन की विशेषताएँ
क्रेडिट आधारित (Credit-based):
वाणिज्यिक धन मूल रूप से बैंकों द्वारा दिए गए ऋण और अग्रिमों पर आधारित होता है।नकदी नहीं, बल्कि जमा (Deposit):
यह प्रत्यक्ष नकदी नहीं होता, बल्कि बैंक खातों में जमा राशि के रूप में कार्य करता है।गुणक प्रभाव (Multiplier Effect):
वाणिज्यिक बैंक एक जमा राशि के आधार पर कई गुना ऋण प्रदान करते हैं, जिससे मुद्रा आपूर्ति बढ़ती है।व्यवसाय-उन्मुख (Business-oriented):
इसका निर्माण मुख्यतः व्यापार, उद्योग और निवेश गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है।सरकारी नियंत्रण (Regulated by RBI):
वाणिज्यिक धन पर नियंत्रण केंद्रीय बैंक (भारत में RBI) द्वारा किया जाता है ताकि अनियंत्रित ऋण वितरण से अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
वाणिज्यिक धन का निर्माण (Creation of Commercial Money)
वाणिज्यिक धन कैसे बनता है, इसे समझने के लिए हमें क्रेडिट निर्माण प्रक्रिया (Credit Creation Process) को देखना होगा।
चरण 1: प्रारंभिक जमा (Primary Deposit)
ग्राहक जब बैंक में धन जमा करता है, तो वह राशि बैंक की कुल जमा (Total Deposit) का हिस्सा बन जाती है।
चरण 2: ऋण प्रदान करना (Lending)
बैंक इस जमा राशि का एक हिस्सा सुरक्षित रखता है (Cash Reserve Ratio – CRR) और शेष राशि ऋण के रूप में उधार देता है।
चरण 3: ऋण का उपयोग
ऋण लेने वाला व्यक्ति उस धन का उपयोग भुगतान और व्यापारिक लेन-देन में करता है, जो अंततः फिर किसी अन्य बैंक खाते में जमा हो जाता है।
चरण 4: गुणक प्रभाव (Credit Multiplier Effect)
यह प्रक्रिया बार-बार चलती है और प्रारंभिक जमा की तुलना में कई गुना अधिक वाणिज्यिक धन अर्थव्यवस्था में प्रचलित हो जाता है।
उदाहरण के लिए
यदि बैंक के पास ₹100 जमा हैं और आरक्षित अनुपात 10% है, तो वह ₹90 ऋण दे सकता है। यह ₹90 पुनः किसी अन्य बैंक में जमा हो जाता है और वह बैंक ₹81 (90 का 90%) ऋण दे देता है। इस प्रकार कुल वाणिज्यिक धन ₹100 से बढ़कर कई गुना हो जाता है।
वाणिज्यिक धन के प्रकार
प्राथमिक जमा (Primary Deposits):
ग्राहक द्वारा नकदी जमा कराए जाने पर उत्पन्न धन।
व्युत्पन्न जमा (Derivative Deposits):
बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने से उत्पन्न धन, जो वास्तव में वाणिज्यिक धन का मूल है।
चालू खाता जमा (Demand Deposits):
जिसे ग्राहक किसी भी समय चेक या डेबिट कार्ड द्वारा निकाल सकता है।
सावधि जमा (Time Deposits):
एक निश्चित अवधि के लिए जमा की गई राशि, जिसके आधार पर बैंक ऋण देता है।
वाणिज्यिक धन का महत्व
व्यापार को प्रोत्साहन (Encouragement to Trade):
वाणिज्यिक धन व्यापारिक गतिविधियों के लिए पूंजी उपलब्ध कराता है।निवेश में वृद्धि (Increase in Investment):
जब बैंकों द्वारा ऋण दिया जाता है तो उद्योगपति और व्यवसायी नए प्रोजेक्ट में निवेश करते हैं।आर्थिक विकास (Economic Development):
अधिक क्रेडिट का अर्थ है अधिक उत्पादन, अधिक रोजगार और अधिक आय।मुद्रा आपूर्ति (Money Supply):
वाणिज्यिक धन मुद्रा आपूर्ति का एक प्रमुख हिस्सा है, जो अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह बनाए रखता है।वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion):
बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से समाज के विभिन्न वर्ग ऋण और क्रेडिट सुविधा प्राप्त कर सकते हैं।
वाणिज्यिक धन और वास्तविक धन (Commercial Money vs. Real Money)
बिंदु | वाणिज्यिक धन | वास्तविक धन (Currency Money) |
---|---|---|
स्वरूप | बैंक जमा, ऋण, क्रेडिट | नोट और सिक्के |
निर्माण | वाणिज्यिक बैंक | केंद्रीय बैंक |
नियंत्रण | RBI के दिशा-निर्देश | सरकार और RBI |
प्रकृति | काल्पनिक/क्रेडिट आधारित | वास्तविक और ठोस |
प्रभाव | गुणक प्रभाव द्वारा आपूर्ति बढ़ाता है | निश्चित मात्रा में प्रचलन |
वाणिज्यिक धन से संबंधित समस्याएँ
मुद्रास्फीति (Inflation):
अत्यधिक वाणिज्यिक धन सृजन से मुद्रा की अधिकता होती है, जिससे महंगाई बढ़ सकती है।ऋण जोखिम (Credit Risk):
यदि उधारकर्ता ऋण वापस नहीं करते, तो बैंकिंग प्रणाली पर संकट आ सकता है।आर्थिक असंतुलन (Economic Imbalance):
गलत दिशा में ऋण प्रवाह से उत्पादन और निवेश असंतुलित हो सकता है।नियमन की कठिनाई (Difficulty in Regulation):
केंद्रीय बैंक को हमेशा बैंकों पर सख्त नियंत्रण रखना पड़ता है ताकि वाणिज्यिक धन का दुरुपयोग न हो।
वाणिज्यिक धन और आधुनिक युग
डिजिटल अर्थव्यवस्था और ऑनलाइन बैंकिंग के दौर में वाणिज्यिक धन का महत्व और भी बढ़ गया है। आज चेक, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, NEFT/RTGS, UPI और इंटरनेट बैंकिंग – सभी वाणिज्यिक धन के आधुनिक रूप हैं।
भारत में UPI
भारत में UPI (Unified Payments Interface) ने वाणिज्यिक धन को सबसे आसान और तेज बना दिया है। लोग नकद लेन-देन की बजाय सीधे अपने खातों के माध्यम से भुगतान करना पसंद करते हैं।
निष्कर्ष
वाणिज्यिक धन आधुनिक अर्थव्यवस्था का एक आवश्यक स्तंभ है। यह व्यापार और निवेश को गति देता है, मुद्रा आपूर्ति को बढ़ाता है और आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। हालांकि, इसका सही प्रबंधन और नियमन अत्यंत आवश्यक है ताकि यह अर्थव्यवस्था में संतुलन बनाए रखे और मुद्रास्फीति या वित्तीय संकट का कारण न बने।
संक्षेप में कहा जाए तो –
वास्तविक धन अर्थव्यवस्था की नींव है और वाणिज्यिक धन उसकी शक्ति।